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आजादी का अमृत महोत्सव' के अंतर्गत मातृभाषा दिवस के अवसर पर सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में मातृभाषा की उपादेयता विषय पर विशेष वेब संगोष्ठी आयोजित

 

अर्चना शर्मा अटल स्वर विचार।

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मध्य प्रदेश सामाजिक विज्ञान अनुसंधान संस्थान, उज्जैन द्वारा "आजादी का अमृत महोत्सव" के अंतर्गत आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की शृंखला के तहत एक विशेष वेबिनार का आयोजन "सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में मातृभाषा की उपादेयता" विषय पर अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर किया गया। मुख्य वक्ता प्रोफेसर अनिल कुमार वर्मा, निदेशक, सेंटर फॉर स्टडीज ऑफ सोसाइटी एंड पॉलिटिक्स, कानपुर एवं विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। 

 प्रोफेसर अनिल कुमार वर्मा ने कहा कि हिंदी और अन्य देशज भाषाओं में अकादमिक उत्कृष्टता के लिए यह आवश्यक है की पर्याप्त मानक संदर्भ पुस्तकों, पाठ्य पुस्तकों, शोध प्रकाशनों का सृजन हो। इन भाषाओं में अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसंधान हेतु उत्कृष्ट क्षमताओं वाले शिक्षकों और शोधकर्ताओं के बिना यह किया जाना संभव नहीं है। दुर्भाग्य से, इन सभी मोर्चों पर आज हमारे पास कमी है और इसलिए मातृभाषा में संचार के उपकरणों, पारिस्थितिकी तंत्र और संस्कृति को विकसित करने के लिए व्यापक सुधार की आवश्यकता है। हम सभी भाषाई साम्राज्यवाद से वाकिफ हैं और ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में हम 46 वें स्थान पर हैं, जो हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। मातृभाषा में शोध करना बहुत जरूरी है और निश्चय ही चिंतन की मौलिकता मातृभाषा में ही सर्वोत्तम रूप से सामने आ सकती है। भाषा मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से शोधकर्ता और समाज के बीच अंतर्संबंधों को विकसित करने की क्षमता रखती है और इसलिए मातृभाषा की भूमिका निसंदेह महत्वपूर्ण होती है। 

आयोजन के प्रमुख वक्ता प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, विभागाध्यक्ष, हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने कहा कि स्थानीय भाषा और बोली को जाने बिना सामाजिक विज्ञान में क्षेत्र अनुसंधान के साथ पर्याप्त न्याय नहीं किया जा सकता है। उन्होंने आदिवासी मुद्दों से संबंधित क्षेत्रीय कार्यों और उनमें भाषा की प्रबल भूमिका के कई उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने इतिहास को समझने और सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों की गहराइयों को समझाने के लिए लोककथाओं का दस्तावेजीकरण करने पर बल दिया। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण में भाषा की जबरदस्त भूमिका है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने हिंदी और अन्य स्थानीय भाषाओं के अधिकतम उपयोग पर जोर दिया है, उम्मीद है कि यह वांछित परिणाम देगा।

 कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर गोपालकृष्ण शर्मा ने की। उन्होंने कहा कि प्रभावी संचार सामाजिक विज्ञान में अनुसंधान के लिए पूर्व शर्त होनी चाहिए जिसमें मातृभाषा का प्रमुख महत्व सदैव रहा है। 

कार्यक्रम के आरम्भ में संस्थान के निदेशक प्रोफेसर यतीन्द्रसिंह सिसोदिया ने स्वागत भाषण दिया और मातृभाषा में उत्कृष्ट सामाजिक विज्ञान अनुसंधान की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने हिंदी और अन्य स्थानीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण अनुसन्धान कार्य की वर्तमान स्थिति को संबोधित करने के लिए एक व्यावहारिक और व्यापक दृष्टिकोण को अपनाये जाने पर भी दिया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में परिदृश्य को पूरी तरह से बदलने की आवश्यकता को रेखांकित किया। 

कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर शैलेंद्र पाराशर, सीनियर फेलो, आईसीएसएसआर द्वारा किया गया और डॉ. तापस कुमार दलपति ने धन्यवाद प्रेषित किया। इस कार्यक्रम में विभिन्न महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के छात्रों, शोधार्थियों और संकाय सदस्यों ने भाग लिया।


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