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वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है मातृभाषा शिक्षण, अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति और मातृभाषा पर हुआ विशिष्ट परिसंवाद

 

अर्चना शर्मा अटल स्वर विचार।

 उज्जैन ,अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में विशिष्ट परिसंवाद का आयोजन संपन्न हुआ।  दिनांक 21 फरवरी 2022 को वाग्देवी भवन स्थित हिंदी अध्ययनशाला सभागार में आयोजित परिसंवाद की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कार्यपरिषद सदस्य श्री विनोद यादव, कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ जफर मेहमूद, बैंक ऑफ बड़ौदा के क्षेत्रीय प्रबंधक श्री सुबोध इनामदार, राजभाषा अधिकारी श्री सद्दाम खान, रतलाम आदि ने विषय के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने की।कुलपति प्रो अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टि से मातृभाषा शिक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। बालक का मस्तिष्क स्थानीय भाषा और परिवेश से सहज ही जुड़ा रहता है। मस्तिष्क की स्वीकार्यता मातृभाषा से सम्बद्ध रहती है। मौलिक शोध में मातृभाषा का महत्व है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए मातृभाषा के माध्यम से सभी विषयों की उच्च स्तरीय पाठ्य सामग्री तैयार करने की आवश्यकता है। विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा फार्मेसी की पाठ्यपुस्तकों का हिंदी में अनुवाद करवाया जाएगा।कुलसचिव डॉ प्रशांत पुराणिक ने कहा कि भारत एक बहुभाषी देश है। हिंदी भाषा को भारत की बिंदी के रूप में जाना जाता है। अंग्रेजों ने हिंदी और फारसी को विस्थापित कर अंग्रेजी को राजकाज की भाषा बनाया, जिसके दुष्परिणाम हम झेल रहे हैं। सभी क्षेत्रों में उच्च स्तरीय ग्रंथों का रूपांतरण मातृभाषाओं में होना चाहिए।कुलानुशासक प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि जिन समुदायों की मातृभाषा चली जाती है, वे आधे अधूरेपन की विडम्बना को झेलते हैं। अंग्रेजों ने भारत की बोली बानी को छीनने का षड्यंत्र किया। भाषाई और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष में सफलता मातृभाषाओं की प्रतिष्ठा से ही संभव है। वर्तमान में अनेक छोटी-छोटी मातृभाषाएं विलुप्त हो रही हैं। विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के माध्यम से देश की डेढ़ दर्जन से अधिक लोक और जनजातीय बोलियों पर कार्य किया गया है, जो संपूर्ण दुनिया में अनूठा है। उच्च शिक्षण और अनुसंधान में मातृभाषाओं को महत्त्व मिलना चाहिए। सहज ग्राह्यता, बाल मनोविज्ञान और मौलिकता की दृष्टि से मातृभाषाओं की महिमा अपार है।प्रो प्रेमलता चुटैल ने कहा कि कोई भी भाषा अपनी संस्कृति को लेकर आती है। भाषा को सुरक्षित रखते हुए हम संस्कृति का संरक्षण कर सकते हैं। मातृभाषा आत्म स्वाभिमान को जगाती है। उन्होंने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के उद्देश्य और गतिविधियों पर प्रकाश डाला।प्रो गीता नायक ने कहा कि हिंदी तथा मातृभाषाओं को समुचित गौरव दिलाने के प्रयास आवश्यक हैं। स्वास्थ्य शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से होना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से देने से ही विद्यार्थी का समुचित विकास संभव है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस बात का समावेश किया गया है। परिवार में संवाद की भाषा मातृभाषा ही हो सकती है।माधव कला और वाणिज्य महाविद्यालय के उर्दू विभाग के प्राध्यापक डॉ जफर महमूद ने कहा कि भाषाएँ जोड़ने का कार्य करती हैं।  मातृभाषा के माध्यम से स्वयं व्यक्ति के साथ देश और समाज की उन्नति सम्भव है। प्रत्येक व्यक्ति मां के साथ मातृभाषा को सीखता है, जो उसके व्यक्तित्व का निर्माण करती है।राजभाषा अधिकारी श्री सद्दाम खान, रतलाम ने कहा कि अपनी मातृभाषाओं के माध्यम से युवा रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग भाषाओं का प्रयोग हो रहा है, जिनमें रोजगार के अपार अवसर हैं। शिक्षण, मीडिया, अनुवाद, राजभाषा सहित अनेक क्षेत्रों में युवा व्यावसायिक सफलता प्राप्त कर सकते हैं।प्रो हरिमोहन बुधौलिया ने कहा कि भाषा लोगों के बीच आत्मीयता का संसार बनाती है। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अपने देश और समाज के प्रति प्रेम उत्पन्न करने का कार्य मातृभाषा के माध्यम से संभव होता है।डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने कहा कि देश में अनेक भाषाएं संकटग्रस्त हैं। वर्तमान में तिब्बती, सिंधी जैसी महत्वपूर्ण भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता है, जिनमें अपार ज्ञान संपदा निहित है।डॉ प्रतिष्ठा शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति व्यक्तित्व निर्माण, कौशल विकास और तकनीकी दक्षता पर बल दे रही है। मातृभाषा की प्रगति की दिशा में अनेक योजनाओं को साकार करने का अवसर मिल रहा है। आयोजन में विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ सत्येंद्र किशोर मिश्रा, डॉ डी डी बेदिया, डॉ शैलेंद्र भारल, डॉ अजय शर्मा, श्रीमती हीना तिवारी, दुर्गाशंकर सूर्यवंशी आदि सहित अनेक प्रबुद्धजन, शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित थे।कार्यक्रम का संचालन डॉ जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ नीरज सारवान ने किया।

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